Kavita Jha

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मेरी बैस्टी मेरी डायरी# डायरी लेखन प्रतियोगिता -17-Dec-2021

31 दिसंबर
कुछ अनकही यादें.....
बैस्टी पिछले कुछ दिनों में मैंने तुझ संग अपनी इस वर्ष के हर माह की यादें साझा कि फिर भी बहुत कुछ छूट गया, कुछ कड़वाहट भरी यादें जिन्हें भुलाकर आगे बढ़ना चाहती हूं तो कुछ मीठी प्यारी सी यादें... जिन्हें हमेशा याद रखना चाहती हूं। मेरा ये लेखन सफ़र इतना आसान नहीं रहा है जितना सबको लगता होगा।वैसे सच कहूं तो मैं इस सफर से खुद को दूर रखना चाहती थी, मैं एक लेखक एक कवि की बेटी... अपने पिता के लेखन और जीविकोपार्जन के बीच संघर्ष को देखा है।पर जानती है बैस्टी हमारे चाहने न चाहने से कुछ नहीं होता... होता वही है जो हमारी किस्मत में लिखा होता है जो भगवान चाहते हैं हमसे वही करवाते हैं। अगस्त 2020 से लगातार लिखती ही जा रही हूं ओनलाइन... पहले प्रतिलिपि फिर अब कई अन्य मंच पर भी जुड़ने की कोशिश कर रही हूं।
अपनी अनकही यादों में सबसे पहले कड़वी यादें ... शायद मार्च का ही महिना था जब प्रतिलिपि पर एक दिन मैं स्त्री हूं... विषय आया था जिस पर मैंने कुछ ऐसा पढ़ा जो थोड़ा अजीब लगा फिर वो प्रोफाइल चैक की तो दंग रह गई... एक स्त्री ऐसा नहीं लिख सकती अपने परिचय में .. उसी समय मन में आऐ भावों को कविताओं में ढाला... मुझे काव्य छंद नियम नहीं आते... न तब आते थे और न ही मैं अब सीखने की कोशिश करती हूं! बस कुछ ऐसा घटित हुआ कि भूलना चाहती हूं अब उन दिनों की यादों को जब मेरी रचनाओं को खरपतवार और मुझे न जाने किन किन नामों से संबोधित किया गया। वो शायद मेरी गलतफहमी थी ... वो आई डी फेक न होकर रियल थी.. जमाना बदल रहा है लड़कियों की सोच भी बदल रही है वो अपने लिए किसी भी शब्द का इस्तेमाल कर सकती है .. मन से आहत हुई थी जिसे भूलना चाहती हूं...
 ,पर लिखना नहीं छोड़ा मैंने और परिणाम सामने आने लगे मुझे कई प्रतियोगिताओं में पुरस्कृत किया गया कभी डिजिटल सर्टिफिकेट तो कभी मेरे नाम ईनाम राशि।मैं मन से शुक्रिया करना चाहुंगी उन सबका जिन्होंने मुझे उन दिनों जब मैं हताश निराश हो गई थी लिखने के लिए प्रोत्साहित किया। ये तो इस साल की शुरुआत की बात थी, 
अब बताती हूं कुछ अनकहा जिसे शब्द ही नहीं दे पा रही थी पर उस मीठी सी याद को संजो कर रखना चाहती हूं...
बात उस समय की है जब इस साल अक्टूबर में मैं अपने मायके दिल्ली गई थी तीन साल बाद... अपनी बचपन की सहेलियों से मिलने का बड़ा मन था, फोन चेंज करने के कारण मेरे सारे नं डीलिट हो गए थे,बड़ी मुश्किल से मैंने फेसबुक के जरिए एक सहेली से नं मांगा तो दूसरी सहेली ने उसका नं दिया जिससे मेरे पास दोनों सहेलियों के नं थे, दोनों से बात करते वक्त लगा वो व्यस्त हैं मिलना नहीं चाहती,मन उदास हो गया। इन्हीं दोनों सहेलियों ने तो मुझे लिखने के लिए प्रेरित किया था फिर अब इनके पास मेरे लिए समय नहीं । मेरे लेखन सफर में मुझे कई राही मिले जो बचपन के दोस्त जैसे लगते हैं।इस बार अपनी दिल्ली यात्रा में ऐसे तीन लेखक साथी से मिलने का सौभाग्य प्राप्त हुआ जिन्हें ओनलाइन देखा था और जिनकी रचनाएं पढ़ती थी।
 सितम्बर में लेखनी के ओपन माईक कार्यक्रम में रवि गोयल जी और आलिया जी को देखा था, स्नेहलता जी को तो प्रतिलिपि के साथ साथ कई मंच पर देखा है और फोन पर भी कई बार बात की थी। हमने मिलने का प्रोग्राम बनाया रवि भाई जो कि महावीर इंक्लेव में रहते हैं, जहां मेरा बचपन बीता..
सच कहूं बैस्टी थोड़ा डर,तो था इस तरह किसी अनजान के घर जाना, स्नेहलता जी से भी पहली बार मिल रही थी बिना फोन स्क्रीन के यानि ऑफलाइन । हम जब रवि भाई के घर पहुंचे तो लगा ही नहीं कि पहली बार किसी अजनबी के घर आए हैं... इतना अपनापन मिला वहां जाकर जो अपनी सहेली से न मिल पाने के ग़म को भूल गई। हमने साहित्य पर बहुत सी बात की जिनमें अंकल जी यानि रवि भाई के पापा भी शामिल थे। उनकी मम्मी और वाईफ को वो हंसता मुस्कुराता चेहरा और हमारी आवभगत आज भी याद करती हूं तो चेहरे पर मुस्कान छा जाती है। वहीं आलिया जी से भी मिलना हुआ, उनके घर अचानक रिस्तेदारो के आने के कारण वो काफी देर बाद पहुंची।हमने लंच वहीं रवि भाई के घर में किया, प्यार भरा स्वादिष्ट भोजन। फिर चाय बिस्किट के साथ हमारा काव्य पाठ भी चला। हां उस दिन बस सीमा जी की कमी खल रही थी जो फिर मैंने विडियो कॉल लगाकर पूरी कर ली,उनका घर वहां से काफी दूर है तो वो नहीं आ पाई। बहुत ही सुन्दर यादों के साथ भरे मन से सबसे विदा ली। स्नेहलता जी ने तो मेरे लिए एक गिफ्ट लाई थी जिसकी उस समय मुझे जरूरत भी थी वो था मेरे इस टैब के साइज का बैग.. बहुत ही प्यारा सा उपहार दिया स्नेहलता जी ने।रवि भाई के दोनों बच्चे इतने कम समय में भी हमारे साथ खूब घुल मिल गए।
वहां से जाने के बाद अपने घर गई ...  बहुत कुछ अनकहा छोड़ ही देना चाहिए कहने से। उस घर के हर कोने में पापा और भाभी आज भी रहते हैं... वैसे भतीजा बहुत खुश दिखा मुझे वहां देखकर। 
***
कविता झा'काव्या कवि'
# लेखनी
#डायरी लेखन प्रतियोगिता

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5 Comments

Ravi Goyal

06-Jan-2022 09:24 AM

बहुत खूब लिखा दीदी आपने। सचमुच मुझे भी वो दिन ऐसे ही याद है जैसे कल ही की बात हो। अगर आप फिर कभी दिल्ली आएं तो जरूर मिलिएगा 😊🙏

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Kavita Jha

06-Jan-2022 09:36 AM

धन्यवाद भाई 🙏

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Sneh lata pandey

04-Jan-2022 12:22 PM

बहुत सुंदर डायरी लिखी है कविता जी आपने आपसे मिलकर लगा ही नहीं कि हम पहली बार मिल रहे हैं या दोस्त नहीं हैं👌👍🌹🌹

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Kavita Jha

04-Jan-2022 03:51 PM

हां जी😊

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Gunjan Kamal

31-Dec-2021 01:43 PM

शानदार लेखन 👌👌👌

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